मैं अभिनवगुप्त
अपने इष्ट को श्रृंगार करते हुए
लेखन क्रिया को नमन करता हूँ
कविता रचना आरम्भ करता हूँ
संस्कृत साहित्य मेरा आदर्श है
यत्र तत्र पढता लिखता हूँ
कवि बनकर काल्पनिक हो गया हूँ
कल्पनाशीलता ही तो मुझे कवि बनाता है
कविता मुझे निडर करता है
यह स्वतंत्रता की अभिव्यक्ति है
कविता में विश्व विचार बसते हैं
अभिनवगुप्त की दृष्टि में कलसर्जना
एक प्रक्रिया का चिरस्थ है
मैं लोगों से संवाद करता हूँ
कविता के द्वारा बौद्धिक ढंग से
यह संवाद परपुरप्रवेश सदृश संवाद है
संवाद करना ही तो प्रतिबिम्ब है
मैं संभवतः दूसरे आचार्यों से
कविता के माध्यम से
सम्यक संवाद कर सकता हूँ
मैं स्वयं को संवदिया मानता हूँ
किंतु संवाद की तो सीमा होती है
तथापि मैं कविता के माध्यम से
सब कुछ बता सकता हूँ निसंदेह
आप ही कहिए
अभिनवगुप्त आपको क्या कहे?
आप जानते हैं?
पश्चिम के विचारकों में एक भ्रम है
की भारतीय काव्य पूर्ण नहीं है
निसंदेह वे संस्कृत जाने बिना
समझे और उनके अर्थ जाने बिना
भारतीय साहित्य का विश्लेषण किया है
और इस झूठ को संचारित किया की
भारतीय काव्य निम्न है
पश्चिम की तुलना में
उन विद्वानों ने पाखंडता से कहा
भारतीय साहित्य में अलंकार सौंदर्य
की तथापि कमी है
बिना भारतीय अलंकारशास्त्र को समझे
बिना कविता की रचनाप्रक्रिया को समझे
यह स्पष्टतः एक बईमानी है
और सर्जनशीलता का घोर अपमान है।
संस्कृत साहित्य में सौंदर्यशास्त्र का
विभिन्न आकर प्रकार है
शतक से अधिक पर्याय है
शिल्प कला,ललित कला
रूप कला,आस्वाद,भूषण आदि
सौंदर्यशास्त्र का ही तो पर्याय है।
पश्चिमी विचारकों को संस्कृत साहित्य में
सुन्दर और अद्भुत शब्द नहीं सूझता है
यह इसलिए चिरस्थायी है
क्योंकि उन्होंने कालिदास, विद्यापति
आदि आचार्यों को नहीं समझा
साहित्य के रहस्यों का स्वाद नहीं चखा।
जो सुन्दर है वो सदैव सुन्दर ही दिखेगा
इसलिए कालिदास
शकुंतला को सुन्दर नहीं
अपितु रमणीय, मधुर कहते हैं।
मैं अभिनवगुप्त कविता सर्जन पर
एक सर्जक की भांति
विशाद-विमर्श किया हूँ
और यह जाना हूँ
कविता चेतना का उन्मेष है
कविता मनस्तत्व का विश्लेषण है
बुद्धि और मन के विभिन्न स्तरों को
भारतीय दर्शन में मीमांसा कहा जाता हैं
और उसकी प्रस्तुति को कविता कहा जाता है
कविता बुद्धि के विभीन्न स्तरों से उत्पन्न होती है
स्मृति मति और प्रज्ञा
तभी तो कवि भविष्य का विश्लेषक होता है
हम समाज को स्मृति से जानते हैं
वर्तमान को मति से परखते हैं
अनागत को प्रज्ञा से समझते हैं
और प्रतिभा पर चिंतन करते हैं
प्रतिभा प्रत्येक जीव में होता है
कविता भी प्रतिभा का एक माध्यम है
कालिदास और विद्यापति मेरे आदर्श हैं
इन्हीं आचार्यों से मैंने कुलक काव्य सीखा है
जिसके द्वारा मैं अपने कविता को
संगीतमय और लयबद्ध बनाता हूँ
श्रृंगार रस, वीर रस आदि
रसों का काव्य रचना करता हूँ
यमक अलंकार का प्रयोग
मैं कभी-कभार करता हूँ।
जब-जब कवि को चेतना घेर लेती है
तब-तब सिद्धांत टूटती है समय आने पर
चाहे वह कवि का श्रृंगार ही क्यों न हो।
कवि फूटा घरा होता है
राज आज्ञा का डर नहीं होता है
प्रतिबद्ध या आबद्ध नहीं होता है
वह जो कुछ भी लिखता है
विस्मृत होने पर भी उसे पहचान लेता है
महावाक्य ही उसका शास्त्र होता है
मानवता ही धर्मशास्त्र होता है
कविता सृजन ही उनकी सार्थकता है
जिसे वे श्रद्धा के साथ लिखते हैं
और फिर लोगों को सुनाते हैं।
कविता एक बंधन होता है
प्रतिभा- निर्माण, छंद-विधान
अलंकार, रस, विषय आदि
कविता के अभिन्न अंग होते हैं
जैसे टहनियाँ वृक्षों के
जैसे वृक्ष फलों और पत्रों से सुसज्जित होते हैं
वैसे ही कविता भी अपने विधानों से
सजती सँवरती और बकती है
कविता समहितचित्र की अभिव्यक्ति है
कवि के लिए कविता की प्रक्रिया ही
जीवन जीने की प्रक्रिया होती है
संन्यासी सौंदर्य नहीं लिख सकता
क्योंकि वे पुरुष हैं
कविता के लिए कवि को
इष्ट शिव और पार्वती के सदृश्य
स्त्री और पुरुष दोनों बनना होता है
केवल स्त्रीत्व से कविता कैसे लिखा जा सकता है?
तपस्वी नाटक कैसे लिख सकते हैं?
पाखंडी सम्यक विचार कैसे कर सकते हैं?
कविता मन की निर्ममता से जन्म लेती है
स्त्रियों से कवि का भौतिक संसर्ग ही
श्रृंगारिक रचना को जन्म देती है
श्रृंगारिक कविता पावनता से जन्मती है
कविता क्षोभ से आकार लेती है
कविता में कवि का शोक है
ऐसा सदा नहीं मानना चाहिए
पूर्ण दुःख, पूर्ण सुख में
कविता नहीं रचा जा सकता
कवि का जीवन व्यक्तिगत नहीं
बल्कि सामाजिक होता है
कविता कला संसार के सामने
प्रतिसंसार का रचना करती है।
मैं अभिनवगुप्त
अपने इष्ट को श्रृंगार करते हुए
लेखन क्रिया को नमन करता हूँ
कविता रचना को लगाम देता हूँ।
रिपुंजय कुमार ठाकुर
17 नवंबर 2016
नई दिल्ली।
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