मिथिला में अरदारा पातैर ब्राह्मण भोजन
आषाढ मासक आद्रा नक्षत्र में कहियो न कहियो सबहक ओहिठाम खास के जिनका अहिठाम गोसाउनिक सीरा रहल भगवती पातैर दय ब्राह्मण संग कुमारि भोजन करायल जायत अछि।
आद्राया: प्रथमेपादे क्षीरमश्नाति यो नर:।
अपि रोषयुतस्तस्य तक्षक: किं करिष्यति।
-कृत्यसार समुच्चय
अपि रोषयुतस्तस्य तक्षक: किं करिष्यति।
-कृत्यसार समुच्चय
आषाढ मासक आद्रा नक्षत्रक प्रथम पाद में खीरक भोजन केला सौं सर्पक राजा तक्षक नाग सेहो किछु नहिं करता तै पर सौं सोम आ शुक्र बेरागनक दिन गहबर में सोम आ शुक्रे के डाली लगै छनि
मिथिला के कोनो भी शुभकार्य में प्रथम भगवती प्रसन्नता संग अनुमति लेल जाई छनि। आषाढ मास कृषिक मास छी आ नीक कृषि भेला सौं जन मानुष कय आहार भेटै छनि तैं नीक वर्षा आ धन धान्य भरल पूरल रहैक लेल अरदारा मिथिला में मनाओल जाई अछि ताहि पर सौं आम जुआ के पाकल रहिते अछि। मैथिल स्त्री बड बेसी श्रद्धा सौं विभोर भय नीप धोई पवित्र सौं खीर बना भगवतीक पातैर दाइ हुनक अराधना करै छनि।
ब्राह्मण भोजनक त सब शुभ मुहूर्त में मैथिल समाज में माहात्म्य अछिए आ भगवती पातैर में त कुमारी कन्याक प्रशस्ती रहिते छनि।
मिथिला के कोनो भी शुभकार्य में प्रथम भगवती प्रसन्नता संग अनुमति लेल जाई छनि। आषाढ मास कृषिक मास छी आ नीक कृषि भेला सौं जन मानुष कय आहार भेटै छनि तैं नीक वर्षा आ धन धान्य भरल पूरल रहैक लेल अरदारा मिथिला में मनाओल जाई अछि ताहि पर सौं आम जुआ के पाकल रहिते अछि। मैथिल स्त्री बड बेसी श्रद्धा सौं विभोर भय नीप धोई पवित्र सौं खीर बना भगवतीक पातैर दाइ हुनक अराधना करै छनि।
ब्राह्मण भोजनक त सब शुभ मुहूर्त में मैथिल समाज में माहात्म्य अछिए आ भगवती पातैर में त कुमारी कन्याक प्रशस्ती रहिते छनि।
जय मिथिला जय मैथिल जय मैथिली
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