शिव धर्म ही भारत का प्राणधर्म

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शिव कह गए हैं- तुम मन के भीतर, आत्मा के भीतर जितना भी चाहो बढ़ते चलो | चरैवेति, चरैवेति | किन्तु बाहरी जगत को उपेक्षा मत करो, क्योंकि बाहरी जगत की उपेक्षा से तुम्हारे अंतर जगत में भी विघ्न पैदा होगा |
                               इस प्रकार शैव मत या शैव धर्म बन गया भारत का प्राणधर्म | शिव का धर्म ईश्वर की प्राप्ति का धर्म है | इस कारन बहिरंगिकता नही है | यज्ञ में घी की आहुति देकर, पशु की आहुति देकर तुच्छ आत्मत्रिप्ति पाने का पथ यह नही है | उन्होंने वज्र कंठ की घोषणा की है- धर्म परम स्न्प्रपति का पथ है, पाशविक सुख भोग का पथ नहीं |
                          शिव व्यवहारिक जीवन कोमल थे, अति कोमल..... कुसुमादपि कोमल अर्थात फुल से भी कोमल |शिव की निति थी मनुष्य है, वह तो भूल-चुक करेगा ही |वह मनुष्य है, देवता तो नही | और साधारण मनुष्य, वह तो भूल कर ही सकता है | साधारण मनुष्य ने भूल की है, कल वह सुधर भी तो सकता है | आज रस्ते पर चलते हुवेकपड़ो पर धुल-कीचड़ लग गया तो कल वह साफ कपडे पहनने का सुयोग क्यों नही प् सकेगा ? इस कारन उनकी निति थी, जिसने अन्याय किया है, उस पर त्रिशुलाघात करो | जिस मुहूर्त में वह अपनी गलती सुधार लिया है, उसे अपनी गोद में बैठा लो | अर्थात उन्होंने जो भी किया, वह मनुष्य के संशोधन के लिए किया |
                                 शिव शिव को प्रणाम करते समय कहा जाता है हे! पिनाकपाने, हे! वज्रधर तुम्हे नमस्कार करता हूँ, क्योंकि तुम्हारा ये वज्र मनुष्य को कष्ट देने के लिए नही है, बल्कि मनुष्य को सुधारने के लिए है | शिव मन-प्राण से मनुष्य के अतीत का सब कुछ भूल जाते हैं | इसीलिए अनुतप्त मनुष्य शिव के सम्मुख नतजानु होकर कहता है- तुम्हारी शरण में नही आऊँ तो किस की शरण में जाऊं, तुम्हे छोड़ कर मुझे कौन शरण देंगे, तुम भोलेनाथ हो | मैंने इतने पाप किये हैं, तुमने उसे सुधार देने के साथ ही साथ क्षमा भी कर दिया | हे! ईश्वर, तुम इतनी सहजता ससे संतुष्ट हो जाते हो, तुम आशुतोष हो | लोग जिनसे घृणा करते थे, उन असुरों ने शिव की शरण मांगी | शिव ने असुरों को शरण दी | असुरगन स्तुति के लिए शिव के पास खड़े हैं, उन्हें मिल रहा है और शिव ने असुरों को बचाया था |शिव ने कहा था- यदि मैं इन्हें न बचाऊँ तो कौन बचाएगा |ये किनके आश्रय में जाएँगे ?
                      शिव ने हर समय चाहा है और ऐसा काम भी किया है, जिससे सम्पूर्ण विश्व अन्त में शांतिपूर्ण ढंग से जीवन-यापन कर सके | शांतिपूर्ण ढंग से जीवन-यापन करने के लिए एक उतकृष्ट आदर्श ग्रहण करना ही पड़ेगा, क्योंकि यदि आदर्श में संघात हुआ तो मनुष्यों में संघात होगा ही और शांतिपूर्ण ढंग से सह-अस्तित्व की स्थापना नही हो सकेगी |
                  आदर्श के रूप में शिव ने सबको सिखाया है कि तुम परम पिता के संतान हो, तुम सब को इस पृथ्वी पर भाई-भाई की तरह, भाई-बहन की तरह वस् करने का अधिकार है | तुमलोग इस अधिकार में सुप्रतिष्ठित हो सको, आदर्श में पुर्नवासित हो सको, इस कारन तुम सबकी मदद के लिए मई सर्वदा प्रस्तुत हूँ |

                अतः हे मनुष्य, आप सबों से निवेदन है की आप भक्ति के मार्ग पर चलें, ईश्वर हमेशा आप के साथ होंगे |
                          जय भोले नाथ !
                हम सब आप की हिय कृपा छाया में पलते है |
                          आप अनंत हो |                                     

                प्रभु आप की  कृपा  छाया सदा हम पर बनी रहे |   
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About सौरभ मैथिल

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