महाशिवरात्रि के दिन शिवलिंग का पूजन किस
प्रकार करनी चाहिए ?
आध्यात्म में तीन रात्रियां अपना विशेष
महत्व रखती है | जिन्हें कालरात्रि, महारात्रि और महोरात्रि के नाम से जाना जाता
है | दीपावली और होली की रात्रि को कालरात्रि, शिवरात्रि को महारात्रि एवं नवरात्र
में अष्टमी की रात्रि को महोरात्रि कहा गया है | प्रत्येक पर्व-त्योहार का अपना एक
विशेष महत्व होता है |
लेकिन ये तिन महापर्व पूजा,
अनुष्ठान एवं साधना के लिए प्रमुख मने जाते है |शिवरात्रि को महारात्रि कहा जाने
का अपना एक अलग ही इतिहास है | इसी दिन शिव-पार्वती विवाह बंधन में आबद्ध हुवे थे
|
शिव-शक्ति के
मिलन की इस महारात्रि कको स्वनिर्मित शिवलिंग के पूजन का विशेष महत्व शास्त्रों और
धर्म ग्रन्थों में वर्णित है |इस शिवलिंग को तैयार करने के लिए शुद्ध चिकनी
मिट्टी, दही,घृत,शहद,शर्करा,गुलाब जल, गाय का दूध, इत्र, केसर, कपूर, रक्त-चन्दन,श्वेत-चन्दन,
श्वेत मदार का पुष्प, बेल और धतुर के बीज और गंगाजल को अच्छी तरतः से मिला कर अर्घ
सहित शिवलिंग तैयार करें और किसी पात्र में स्थापित करें|
प्रदोष काल में श्वेत वस्त्र धारण
कर कुशासन पर पूर्व की ओर मुख कर बैठें | सर्वप्रथम गंगाजल, पंचामृत और गुलाब-जल
से एन मंत्रून का उच्चारण करते हुवे एक धर में स्नान कराएं- ‘ॐ भवम देवम्
तर्पयामि’, ‘ॐ सर्व देवम् तर्पयामि’, ‘ॐ ईशान देवम् तर्पयामि’, ‘ॐ पशुपति देवम्
तर्पयामि’, ‘ॐ रुद्र देवम् तर्पयामि’, ‘ॐ उग्र देवम् तर्पयामि’, ‘ॐ भीम देवम्
तर्पयामि’, ‘ॐ महान्तम देवम् तर्पयामि’ |
पूजन के बाद शिव-शक्ति के स्वरुप का ध्यान करते हुए 'ॐ नमः शिवाय' मंत्र की माला जाप कर एक माला शिव-गायत्री - 'ॐ महादेवाय विद्यहे रुद्द्र मूर्तय धीमहि तन्नो शिव प्रचोद्यात' मंत्र का जाप कर आरती और कीर्तन के साथ सपरिवार रात्रि जागरण करने का विशेष महत्व है |
आप सबों को महाशिवरात्रि पर्व की बहुत-बहुत बधाई |
पूजन के बाद शिव-शक्ति के स्वरुप का ध्यान करते हुए 'ॐ नमः शिवाय' मंत्र की माला जाप कर एक माला शिव-गायत्री - 'ॐ महादेवाय विद्यहे रुद्द्र मूर्तय धीमहि तन्नो शिव प्रचोद्यात' मंत्र का जाप कर आरती और कीर्तन के साथ सपरिवार रात्रि जागरण करने का विशेष महत्व है |
आप सबों को महाशिवरात्रि पर्व की बहुत-बहुत बधाई |
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