मधुमय बना यह वसंत जीवन
जिसका प्रमाण है मकरंद की लहरों में
आयी है यह चुपके से
शीतल पवन के साथ
सुन्दर अनुराग लिए
रजनी के पिछले पहरों में
और हम सभी को वसंत के
गुणों से नहला दिया है।
इस मधुमय वसंत के आते ही
वायु के शीतल वर्ण उड़ उठी है
मतवाली कोयल बोल उठी है
अभिलाषा अपने यौवन में उठ चुकी है
उस सुख के स्वागत को
क्षण क्षण होती प्रकट
नवीना बनकर उसकी छाया
अलसाई कलियाँ भी आँखे खोल चुकी है।
मधु लहरों के टकराने से
ध्वनि में है क्या गुंजार भरा।
जिसका प्रमाण है मकरंद की लहरों में
आयी है यह चुपके से
शीतल पवन के साथ
सुन्दर अनुराग लिए
रजनी के पिछले पहरों में
और हम सभी को वसंत के
गुणों से नहला दिया है।
इस मधुमय वसंत के आते ही
वायु के शीतल वर्ण उड़ उठी है
मतवाली कोयल बोल उठी है
अभिलाषा अपने यौवन में उठ चुकी है
उस सुख के स्वागत को
क्षण क्षण होती प्रकट
नवीना बनकर उसकी छाया
अलसाई कलियाँ भी आँखे खोल चुकी है।
मधु लहरों के टकराने से
ध्वनि में है क्या गुंजार भरा।
वे फूल और सौरभ जीवन वन
वह कलरव ,वह नृत्य ,वह संगीत अरे वह
सौंदर्यता की कोलाहल एकांत बना
जहाँ अध्यन का होता है एक अलग मजा।
रंगों ने जिनसे खेला है ऐसे फूलों की वह डाली
देखो इन फूलो को कैसे खिलते हैं यह सुन्दर
जिसके सुगंधों को हम सब करते ग्रहण
जिससे हम अपने आराध्य को पूजते हैं
इन फूलों से ग्रहण करो
इतने गुणों के होने पर भी
नही है इनको घमंड स्वयं पर।
देती है यह नवीन आशा हमको
इन फूलों को देखो हँसो और सुख पाओ
अपने सुख को विस्तृत कर सबको सुखी बनाओ।
वह कलरव ,वह नृत्य ,वह संगीत अरे वह
सौंदर्यता की कोलाहल एकांत बना
जहाँ अध्यन का होता है एक अलग मजा।
रंगों ने जिनसे खेला है ऐसे फूलों की वह डाली
देखो इन फूलो को कैसे खिलते हैं यह सुन्दर
जिसके सुगंधों को हम सब करते ग्रहण
जिससे हम अपने आराध्य को पूजते हैं
इन फूलों से ग्रहण करो
इतने गुणों के होने पर भी
नही है इनको घमंड स्वयं पर।
देती है यह नवीन आशा हमको
इन फूलों को देखो हँसो और सुख पाओ
अपने सुख को विस्तृत कर सबको सुखी बनाओ।
है अंतरिक्ष आमोद भरा
नव नील कुञ्ज है झूम रहे
शीतल पवन जैसे मधु की धारा
सौंदर्यमयी चंचल कृतियाँ बनकर नाच रहीं
यह इसी ऋतु का गुण है जिसे मैं बक रहा।
नव नील कुञ्ज है झूम रहे
शीतल पवन जैसे मधु की धारा
सौंदर्यमयी चंचल कृतियाँ बनकर नाच रहीं
यह इसी ऋतु का गुण है जिसे मैं बक रहा।
आम्र वृक्षों पर मंजरियाँ चमक उठी है
कोमल किसलय के अंचल में
कलिका नहीं छिप रही है
आखिर कैसे कोई सुंदरता छिप सकती है।
एक ओर जहाँ हिंसात्मक उग्र विचारों
से तप रही है विश्व
वहीं दूसरी ओर आनंद प्रतिध्वनि गूँज रही हैं
निर्मल वन सघन में।
मधुमय बना यह वसंत जीवन
जिसका प्रमाण है मकरंद की लहरों में।
कोमल किसलय के अंचल में
कलिका नहीं छिप रही है
आखिर कैसे कोई सुंदरता छिप सकती है।
एक ओर जहाँ हिंसात्मक उग्र विचारों
से तप रही है विश्व
वहीं दूसरी ओर आनंद प्रतिध्वनि गूँज रही हैं
निर्मल वन सघन में।
मधुमय बना यह वसंत जीवन
जिसका प्रमाण है मकरंद की लहरों में।
-: रिपुंजय कुमार ठाकुर
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