दरभंगा के सांसकृतिक इतिहास की एक झलक

Image result for image of darbhanga
प्राचीन काल से ही मिथिला की एतिहिसिक एवं सांस्कृतिक पृष्ठभूमि अत्यंत गौरवमयी रही है | राजा जनक के काल से आधुनिक समय तक मिथिला ने अनेक उत्थान-पतन की कहानियां को अपने अंक में छुपा रखा है | इसकी भौगोलिक संरचना, भाषा, रीती रिवाज, खान-पान , कला साहित्य, दर्शन ,ज्योतिष ,सामाजिक परिवेश के विकास के विभिन्न रूपों ने इसे विशिष्ट और पृथक पहचान दी है |
                       उतर में हिमालय की तराई से दक्षिण में गंगा नदी एवं पूर्व  में कोशी पश्चिम में नारायणी नदी के तट से सीमाबद्ध विस्तृत क्षेत्र में फैले मिथिलांचल ने भिन्न भिन्न जाती , धरम रंग रूप संस्करों को अपने में समाहित कर एक परिष्कृत मिथिला संस्कृति को जन्म दिया है जिसने पौराणिक काल से आज तक अपनी पहचान बनाये रखी है | दरभंगा को मिथिला की राजधानी रहने का गौरव प्राप्त है | ऐतिहासिक काल में यह मौर्य, शुंग कंव तथा गुप्त वंश तक पाटलिपुत्र से शासित होता रहा | गुप्त काल में उत्तर भारत को तिरभुक्ति नाम दिया , जिसके अंतर्गत सम्पूर्ण मिथिला क्षेत्र समाहित था |
         गुप्त साम्राज्य के पतन के बाद स्थानीय राजाओ की ही यहाँ प्रमुखता रही | परन्तु बाद के काल 606 से 648 ई० के बिच हर्षबर्धन ने इसे अपने राज्य में मिला लिया | चीनी यात्री ह्वेनसांग ने हर्षवर्धन की मृत्यु के पश्यात इस क्षेत्र का भ्रमण किया था | चीन के धर्म परचारक दल के साथ मतभेद के करण कुछ समय के लिए तिब्बत के सेना ने इसे अपने अधिकार में कर लिया |पुनः 672 ई० के लगभग आदित्य सेन ने इस पर अपना आधिपत्य कायम किया 9वी शताब्दी बंगाल के पाल शासको के अधीन यह राज्य आ गया |
          1097 ई० में दक्षिण भारतीय सिम्राव वंशीय कर्नाट राजवंश के राजा नान्य्देव ने यहाँ अपने राज्य की नीव डाली | हरिसिंह देव इस वंश के अंतिम अति प्रतापी राजा थे , जिनके शासन- काल में  पंजी प्रथा प्रारंभ हुई |इस राज्यवंश के अंत के बाद तिरहुत दिल्ली सल्तनत के आधीन आ गया ? परन्तु स्थानीय सत्ता ओइंनवार राज्यवंश के आधीन ही रही | कर्नाट्य एवम् ओईनवार राज्यवंश के काल में मिथिला संस्कृति का पुनर्जागरण हुआ तथा दरभंगा एवं मधुबनी के आस पास नव्य न्याय एवं मीमांसा दर्शन का प्रभुत्व रहा | बंगाल  समेत समस्त उत्तरी एवं पूर्वी भारत के जिज्ञासु छात्र दर्शन के शिक्षा ग्रहण करने हेतु यहाँ आने लगे | तुर्क अफगान काल में यह मिथिली भाषा तथा साहित्य का विकास हुआ | मुग़ल काल में उत्तर भारत के अन्य भागों की तरह मिथिला मुग़ल साम्राज्य का अंत हो गया |
                   1764 ई० के बक्सर युद्ध अंग्रेजों को मिली भारी सफलता के बाद बंगाल के निचले हिस्सों के साथ मिथिला भी अंग्रेजों के शासन के अंतर्गत आ गया | 18वी सदी के उतरार्द्ध और 10वी सदी के मध्य तक मिथिला के प्रधान संस्कृति केंद्र दरभंगा को खंण्डवाला कुल की राज्यधानी रहने का गौरव प्राप्त हुआ |
                                  भौगोलिक दृष्टिकोण से यहाँ की जमीन बाढ़ द्वारा लायी गयी उपजाऊ मिटटी से बनी है | इसकी निचली भूमि दल दल तथा झिलनुमा है | बाग़मती ,अधवारा , कमला और तिलजुगा यहाँ की प्रधान नदियाँ है | खरीफ तथा रब्बी यहाँ की मुख्य फसल एवं जाडा , गर्मी और बरसात मुख्य ऋतुएँ है | चावल, मछली , पान ,माखन यहाँ के प्रधान भोज्य पदार्थ के साथ ही प्रमुख व्यवसाय भी है | फलों में दरभंगा का मालदह आम काफी प्रसिद्ध है | धोती , कुर्ता , दुपट्टा और पाग पुरुषों की तथा साडी और ब्लाउज (आंगी) महिलाओं की प्रधान वेश भूषा है |
                                             समाज में शैव और शक्ति धर्म की प्रधानता है | परन्तु अन्य देवी देवताओं के प्रति भी  श्रद्धा का भाव है | मैथिली यहाँ की प्रधान भाषा है | हिंदी के प्रति भी लोगों में आदर का भाव है | मकर-संक्रांति, होली, रामनवी, मधुश्रावणी, चौठ-चाँद, दुर्गापूजा,दिवाली, छठ , यहाँ की प्रशिद्ध धर्मिकोत्सव हैं | पराती, सोहर, वटगमनी, लोरिक, सल्हेस, दिना भद्री, जट-जटिन, कीर्तनियां, यहाँ के प्रमुख लोक संगीत है एवं ढोलक, झाल, करताल, मृदंग, डम्फा, ढोल-पिपही, सिंघा मशक इत्यादि प्रमुख वाद्य यंत्र है |
                    रामायण, महाभारत तथा अन्य क्षेत्रीय धार्मिक संस्कारों पर आधारित विभिन्न काल्पनिक चित्रों का भिन्न-भिन्न रंग-रूप एवं रेखाओं में अनपढ़ ग्रामीण महिलाओं द्वारा एक विशेष शैली (मिथिला-लोकचित्र-शैली) में स्वतंत्र रूप से पारम्परिक ढंग से निर्मित चित्र यहाँ की चित्र कला की अलग पहचान है | इन चित्रों में प्राकृतिक रंगों का प्रयोग किया जाता है जो घर के आस-पास आसने से सुलभ होते हैं | इन में अनुपात का अभाव होता है | चित्रों में रेखांकित प्रतिक विशेष भाव को इंगित करते हैं |
    हस्तशिल्प के रूप में पेपर मस्सी कल, सिक्की घास से तरह-तरह के सुन्दर कलात्मक वस्तुओं  का निर्माण पारम्परिक कला के संवर्द्धन और व्यवसाय दोनों ही दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण हैं | दरभंगा, उच्चकोटि के संस्कृत साहित्य तथा वैदिक शिक्षा के लिए ख्यातिलब्ध रहा है | याज्ञवल्क्य, गौतम,कपिल, विभंडक, सतानंद, अयाची मिश्र, आदि यहाँ के प्रधान दार्शनिक थे | न्याय-मीमांसा के क्षेत्र में भट्ट-स्कूल और प्रभाकर स्कूल की ख्याति थी | कुमारिल भट्ट और मुरारी मिश्र महान चिन्तक थे | मंडन मिश्र और भारती धर्मदर्शन के महान ज्ञाता थे |
                  जगद्गुरु शंकराचार्य एवं मंडन मिश्र, वंगौव-महिसी (वर्तमान सहरसा जिला) का शास्त्रार्थ तथा मंडन मिश्र की पत्नी भारती की अलौकिक तर्क से शंकराचार्य का परास्त होना जगविदित है | भव्य न्याय के प्रवर्तक पंडित गंगेश उपाध्याय तथा न्याय षट्दर्शन के प्रणेता पंडित वाचस्पति मिश्र प्रशिद्ध न्यायिक थे |
                                  मैथिली कोकिल विद्यापति संस्कृति साहित्य के साथ ही मैथिली भाषा के महान कवि थे जिन्होंने अपनी श्रृंगारिक एवं भक्ति रस की कविताओं से जहाँ एक ओर जनमानस को सराबोर किया वहीँ दूसरी ओर तत्कालीन समाज में फैली कुरीतियों को उजागर कर उसे दूर करने हेतु आम जन को प्रेरित भी किया | हास्य कवि के रूप में पंडित गोनू झा आज भी लोगों के मानस पटल पर व्याप्त हैं | नक्षत्र तथा ग्रहों के चाल के सम्बन्ध में वैज्ञानिक ढंग से गणित के आधार पर गणना कर ज्योतिषी घटनाओं का पूर्वानुमान करने में सक्षम थे |
                         दरभंगा महाराज पंडित महेश ठाकुर ज्योतिषी के महान ज्ञाता थे | इन्होंने ज्योतिष की कई पुस्तकों की रचना भी की | आधुनिक कवि चंदा झा तथा जन-कवि नागार्जुन को कौन नही जनता है ?

             
Share on Google Plus

About सौरभ मैथिल

This is a short description in the author block about the author. You edit it by entering text in the "Biographical Info" field in the user admin panel.

0 comments:

Post a Comment

Thanks for your valuable feedback. Please be continue over my blog.

आपकी बहुमूल्य प्रतिक्रिया के लिए धन्यवाद। कृपया मेरे ब्लॉग पर आना जारी रखें।

Disclaimer: इस ब्लॉग पर बहुत जगहों से content को उपलब्ध किया जा रहा है, अगर आपको लगे की ये चीज आपकी है तो आप सम्बंधित पोस्ट पर कमेंट करें ना की हमें कॉल करने की कोशिश ।