मिथिला में उपनयन का भी अलग ही महत्त्व है :
मिथिला में उपनयन या फिर कहें जनेऊ संस्कार जो कि ब्राह्मण के साथ - साथ कुछ अन्य जाती में भी होता है। लेकिन दोनों में फर्क है, ब्राह्मण के लिए उपनयन संस्कार बालिग होने से पहले किया जाता है, और अन्य में शादी के समय।
प्राचीन तथ्य :
हिन्दू धर्म में सोलह संस्कारों का विधान है। उनमें एक उपनयन संस्कार है। इस संस्कार से बालक के मन में अध्यात्म चेतना जागृत होती है। ऐसा कहा जाता है कि जब बालक ज्ञान अर्जन योग्य हो जाता है, तब उपनयन संस्कार किया जाता है। खासकर ब्राह्मणों में इस संस्कार का अति विशेष महत्व है। कालांतर से इस संस्कार की विधि-पूर्वक निर्वाह किया जा रहा है। आइए, इस संस्कार के बारे में विस्तार से जानते हैं-
उपनयन संस्कार:
समाज में वर्ण व्यवस्था व्याप्त है। इस व्यवस्था के अंतर्गत प्रथम स्थान पर ब्राह्मण है, दूसरे पर क्षत्रिय है। जबकि तीसरे पर वैश्य और चौथे पर शूद्र है। इस क्रम में ब्राह्मण बालक का आठवें साल में उपनयन संस्कार होता है, क्षत्रिय बालक का 11 वें साल में होता है। जबकि वैश्य बालक का 15 वें साल में उपनयन संस्कार होता है।
कालांतर से इस संस्कार का विशेष महत्व है। हालांकि, तत्कालीन समय में वर्ण व्यवस्था उपनयन संस्कार से निर्धारित किया जाता था। ऐसा कहा जाता है कि जब बालक ज्ञान हासिल करने योग्य हो जाए तो उसका सर्वप्रथम उपनयन संस्कार कराना चाहिए। इसके बाद उसे ज्ञान हासिल करने हेतु पाठशाला भेजना चाहिए। प्राचीन समय में जिस बालक का उपनयन संस्कार नहीं होता था उसे मूढ़ श्रेणी में रखा जाता था। जबकि उसकी जाति शूद्र मानी जाती थी।
उपनयन संस्कार विधि
इस संस्कार में बालक जनेऊ धारण करता है, जो धागे से बना होता है। कई ग्रंथों में बालिका के भी उपनयन संस्कार के विधान है। हालांकि, आजीवन ब्रह्मचारी जीवन व्यतीत करने वाली बालिका ही उपनयन संस्कार करा सकती है। बालक 3 तीन धागो से सजी जनेऊ धारण करते हैं।
जबकि विवाहित पुरुष 6 धागों से बनी जनेऊ पहनते हैं। इस संस्कार में मंडप सजाया जाता है, मुंडन किया जाता है और बालक को हल्दी भी लगाई जाती है। इसके बाद स्नान कराया जाता है। इसके साथ ही कई अन्य रीति रिवाजों का निर्वहन किया जाता है।
क्या-क्या मनाया जाता है मिथिला में ?
1. बसकट्टी
2. मरबा
3. चरकट्टी
4. कुमरम
5. केस कटाई/उपनयन
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