जंगल में एक गर्भवती हिरनी बच्चे को जन्म देने वाली थी । वो एकांत जगह की तलाश में घूम रही थी । उसे नदी किनारे ऊँची और घनी घास दिखी । उसे वो उपयुक्त स्थान लगा शिशु को जन्म देने के लिये ।
वहां पहुँचते ही उसे प्रसव पीड़ा शुरू हो गयी । उसी समय आसमान में घनघोर बादल वर्षा को आतुर हो उठे और बिजली कड़कने लगी । उसने दाँये देखा तो एक शिकारी तीर का निशाना उस की तरफ साध रहा था । घबराकर वह दाहिने मुड़ी तो वहां एक भूखा शेर झपटने को तैयार बैठा था । सामने सूखी घास आग पकड़ चुकी थी और पीछे मुड़ी तो नदी में जल बहुत था ।
मादा हिरनी क्या करती ? वह प्रसव पीड़ा से व्याकुल थी ।
अब क्या होगा ?
वो एक तरफ आग से घिरी है और पीछे नदी है क्या करेगी वो ?
उसने अपने आप को शून्य में छोड़ , अपने बच्चे को जन्म देने में लग गयी ।
कुदरत का करिश्मा देखिये ..
बिजली चमकी और शिकारी का तीर छोड़ते हुए आँखे चौंधिया गयी और उस का तीर हिरनी के पास से गुजरता हुआ शेर को जा लगा ।
घनाघोर बारिश शुरू हो गयी और जंगल की आग बुझ गयी ।
हिरनी ने शावक को जन्म दिया ।
हमारे जीवन में भी कुछ क्षण ऐसे आते है जब हम चारो तरफ से समस्याओं से घिरे होते है और कोई निर्णय नहीं ले पाते । तब कुछ पल ऐसे आते हम शून्य हो कर सब कुछ नियती के हाथों में छोड़ देते है जैसे उस हिरनी ने किया ।
जो पहली प्राथमिकता हो वो करो जैसे हिरनी ने शावक को जन्म दिया, बाक़ी प्रभु पर छोड़ दो ।
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