Mithila For Tourism

Source: Wikipedia. 

मिथिला-धाम 


मिथिला प्राचीन भारत में एक राज्य था। मिथिला वर्तमान में एक सांस्कृतिक क्षेत्र है जिसमे बिहार के तिरहुत, दरभंगा, मुंगेर, कोसी, पूर्णिया और भागलपुर प्रमंडल तथा झारखंड के संथाल परगना प्रमंडल के साथ साथ नेपाल के तराई क्षेत्र के कुछ भाग भी शामिल हैं। मिथिला की लोकश्रुति कई सदियों से चली आ रही है जो अपनी बौद्धिक परम्परा के लिये भारत और भारत के बाहर जानी जाती रही है। इस क्षेत्र की प्रमुख भाषा मैथिली है। हिन्दू धार्मिक ग्रंथों में सबसे पहले इसका संकेत शतपथ ब्राह्मण में तथा स्पष्ट उल्लेख वाल्मीकीय रामायण में मिलता है। मिथिला का उल्लेख महाभारत, रामायण, पुराण तथा जैन एवं बौद्ध ग्रन्थों में हुआ है।



मिथिला एवं विदेह

विदेह और मिथिला नामकरण का सर्वाधिक प्राचीन संबंध शतपथ ब्राह्मण में उल्लिखित विदेघ माथव से जुड़ता है। मिथिला के बसने के आरंभिक समय का संकेत उक्त कथा में प्राप्त होता है। विदेघ माथव तथा उसके पुरोहित गोतम राहूगण सरस्वती नदी के तीर से पूर्व की ओर चले थे। उनके आगे-आगे अग्नि वैश्वानर नदियों का जल सुखाते हुए चल रहे थे। सदानीरा (गण्डकी) नदी को अग्नि सुखा नहीं सके और विदेघ माथव द्वारा यह पूछे जाने पर कि अब मेरा निवास कहाँ हो, अग्नि ने उत्तर दिया कि इस नदी के पूर्व की ओर तुम्हारा निवास हो। शतपथ ब्राह्मण में स्पष्ट रूपेण उल्लिखित है कि पहले ब्राह्मण लोग इस नदी को पार नहीं करते थे तथा यहाँ की भूमि उपजाऊ नहीं थी। उसमें दलदल बहुत था क्योंकि अग्नि वैश्वानर ने उसका आस्वादन नहीं किया था। परंतु अब यह बहुत उपजाऊ है क्योंकि ब्राह्मणों ने यज्ञ करके उसका आस्वादन अग्नि को करा दिया है। गण्डकी नदी के बारे में यह भी उल्लेख है कि गर्मी के बाद के दिनों में भी, अर्थात् काफी गर्मी के दिनों में भी, यह नदी खूब बहती है। इस विदेघ शब्द से विदेह का तथा माथव शब्द से मिथिला का संबंध प्रतीत होता है। शतपथ में ही गंडकी नदी के बारे में उल्लेख करते हुए स्पष्ट रूप से विदेह शब्द का भी उल्लेख हुआ है। वहाँ कहा गया है कि अब तक यह नदी कोसल और विदह देशों के बीच की सीमा है; तथा इस भूमि को माथव की संतान (माथवाः) कहा गया है।

वाल्मीकीय रामायण तथा विभिन्न पुराणों में मिथिला नाम का संबंध राजा निमि के पुत्र मिथि से जोड़ा गया है। न्यूनाधिक अंतरों के साथ इन ग्रंथों में एक कथा सर्वत्र प्राप्त है कि निमि के मृत शरीर के मंथन से मिथि का जन्म हुआ था। वाल्मीकीय रामायण में मिथि के वंशज के मैथिल कहलाने का उल्लेख हुआ है जबकि पौराणिक ग्रंथों में मिथि के द्वारा ही मिथिला के बसाये जाने की बात स्पष्ट रूप से कही गयी है। शब्दान्तरों से यह बात अनेक ग्रंथों में कही गयी है कि स्वतः जन्म लेने के कारण उनका नाम जनक हुआ, विदेह (देह-रहित) पिता से उत्पन्न होने के कारण वे वैदेह कहलाये तथा मंथन से उत्पन्न होने के कारण उनका नाम मिथि हुआ। इस प्रकार उन्हीं के नाम से उनके द्वारा शासित प्रदेश का नाम विदेह तथा मिथिला माना गया है। महाभारत में प्रदेश का नाम 'मिथिला' तथा इसके शासकों को 'विदेहवंशीय' (विदेहाः) कहा गया है।

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प्रमुख तीर्थ एवं दर्शनीय स्थल

श्रीराम-सीता से संबंधित विशेष स्थान होने के अतिरिक्त मिथिला देवाधिदेव महादेव के पूजन-स्थल के रूप में विशेष प्रसिद्ध रही है। वृहद् विष्णुपुराण के अनुसार यहाँ के अंतर्वर्ती प्रमुख शिवलिङ्गों के नाम इस प्रकार हैं:-

  • शिलानाथ
  • कपिलेश्वर (पूर्व में)
  • कूपेश्वर (आग्नेय कोण में)
  • कल्याणेश्वर (दक्षिण में)
  • जलेश्वर (पश्चिम में)
  • जलाधिनाथ क्षीरेश्वर (उत्तर में)
  • त्रिजग महादेव
  • मिथिलेश्वर महादेव (ईशान कोण में)
  • भैरव (नैऋत्य कोण में)

मिथिला परिक्रमा के क्रम में सीमावर्ती शिवलिङ्गों का उल्लेख करते हुए सिंहेश्वर महादेव तथा कामेश्वर लिङ्ग का नाम अत्यधिक श्रद्धा पूर्वक लिया गया है। इस प्रकार यहाँ एकादश शिवलिङ्गों के नाम परिगणित किये गये हैं। पूर्व में सिंहेश्वर महादेव को प्रणाम कर परिक्रमा आरंभ करने तथा पुनः घूमकर सिंहेश्वर महादेव के पास पहुँचकर नियम-विधि पूर्ण करके ही घर जाने की बात कही गयी है।

मिथिला के प्रमुख शहर

  • जनकपुर
  • मुजफ्फरपुर
  • पूर्णिया
  • समस्तीपुर
  • दरभंगा
  • सीतामढी
  • जनकपुरधाम
  • सहरसा
  • कटिहार
  • मधुबनी
  • बेगूसराय
  • भागलपुर
  • दुमका
  • देवघर


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