पति पुत्र धन वैभव यश कीर्ति निरोगी काया देनिहार ई पवित्र पूजा अनन्त चतुर्दशी जे स्वयं नारायणक पूजा छी, भगवान श्रीकृष्ण द्वारा युधिष्ठिर के अज्ञात वासक समय कष्ट निवारणार्थ इ पूजा करैलेल कहलनि | संपूर्ण मिथिलाक गाम गाम में मैथिल स्त्री पवित्रता सौ घर दुआइर के बहारि पाक् स्थल के नीपी स्नान कय भोरे भोर चीनी सोहारी बना समसामयिक फल सोहाँस केरा सेव मखानादि सौं डाली सजा अनन्तक डोरा जे बजार में बिकैतो छै, आ बहुत मैथिल स्त्री जनऊ वा पवित्र डोरा लय भगवान विष्णुक ध्यान गान करैत स्वयं निर्माण करैत छथि डाली में राखि पवित्र वस्त्र सौं डाली झांपि निकट अनन्त पूजन स्थल पर धियापुता वा स्वयं जा डाली रखैत कल जोरी पूजा में भाग लैत छथि किएक त इ पूजा सब गाम में कतौह कतौह कियो कियो करैत छथि जेना कियो विद्वजन ब्राह्मण वा मंदिरक पुजारी।
भादव शुक्ल उदयकालिन चतुर्दशी तिथि के अनन्त पूजाक विधान अछि।कम से कम 14 वर्ष धरि इ पूजा करबे करी।मिथिला में त इ पावैन जीवन पर्यंत करैत छथि।पूजा स्थल के नीपी अष्टदल अरिपन लिखि सिनूर लगा पवित्र पीढी वा छोटसन चौकी पर पिठार सौं कमलक फूल बना सिनूर लगा आमक पल्लव देल कलशक स्थापन कय सिनूर पिठार लगा सूर्यादि पंचदेवता, बलभद्र, सुमन्त, ईन्द्रादि दशदिक्पाला, नवग्रह आ अंत में महादेवक पंचोपचार पूजा अति श्रद्धा सौं कय पुरना अनन्त जे भक्त सालोभरि पहिरने रहैत छथि एक ठाम लय पहिने हुनकर पूजा कय नव बनल अनन्त के गायक दूध भरल कटोरा में राखि पुरना अनन्त डोरा सौं मथई छथि हुनका सौं पंडित पुरोहित पूछै छनि-
कि मथई छी? क्षीरसमुद्र!
कि भेटल? अनन्त महाराज!
तखन स्वास्ति प्राप्त कय अनंत लय माथ में ठेका प्रणाम कय विसर्जन कय अंगना अंगना सौं आयल डालीक फल पकवान उत्सर्ग कय पूजा में आयल सब भक्तगण संग सतयुगक सात्विक ब्राह्मण सुमंतजीक जीवन पर आधारित अनन्त देवक कथा ध्यान सौं सुनि आरती प्रदक्षिणा पुष्पांजलि विसर्जन कय पूजा में चढाओल प्रसाद वितरण करैत छथि आ सब आगंतुक अपन अपन प्रसाद रूपी डाली लय आंगन में गोसाऊन लग राखि सपरिवार प्रणाम कय पुरूष दाहिना बांहि पर आ स्त्री बायां बांहि पर इ मंत्र पढैत बन्है छथि-
ॐअनन्तसंसारमहास मुद्रे मग्नान् समभ्युद्धर वासुदेव
अनन्तरूपे विनियोजयस्व अनन्तरूपाय नमोनमस्ते।
मंत्र संभव नहिं भेल त नारायण भगवान विष्णु के हृदय सौं प्रणाम कय बान्हि लैत छथि।
तदुपरांत प्रसाद रूपी फल पकवान सपरिवार ग्रहण करै छथि। कतेक लोक त अनन्त कमे समय में पहिरि जल में विसर्जन कय दैत छथि आ बहुतो लोक सालोभरि बन्हने रहै छथि आ पुनः अगिला सालक अनन्त पूजा दिन विसर्जन करै छथि जिनका जतेक श्रद्धा।
जय हो अनन्त महाराज!
||जय मिथिला, जय मैथिल, जय मैथिली||
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