शीर्षक "अपन देश " मैथिली कविता


शीर्षक अच्छि "अपन देश "
अपन देश स दूर भ क,
सुखों म दुखक अनुभूति अछि |
मुहँ तकैत बटोही

घूम रहल छथि पूरब पश्चिम,

एक दिनक छाया क आशा म,
आधुनिकता क मदहोशी म,

लोग बटोही क बटोही नै कहै छथि,
 तहिना मुँह तकैत छी हम

आबि अहि परदेश म ।|


छी अब हम व्यथित बनल,
फँसि गेलौ महानगरक माया म |
 राखी ल हाथ तरसल,
दुर्गापूजा बिसरल,दिवाली बिसरल
 भैयादूज ल कपार तरसल |
मिथिला क पाग मखान छूटल,
 ग्राम छूटल, भतार छूटल
नदी म स्नान छूटल,खलिहान छूटल
 अपन देश क बाट छूटल |
मन करैत अछि घुरि जाई,
अपन मिथिला देश म।|

कहैत छथि भारती,

एक-एक क आहाँ तोड़ि चलु

मनक ऊब और शहरी दिखावा,

फिर बनूं आहाँ प्रेमक लावा,
 और साधारण पुरुष

तखन देखियौ मैथिल संस्कृति
 कतेक सभ्य अछि ,
कतेक सुसंस्कृत
जाँहि पर दुनिया बौरायल अछि |
 अपन देश स दूर भ क,
सुखों म दुखक अनुभूति अछि।|
लेखक :-
                                                                   रिपुञ्जय कुमार ठाकुर
                                                                    25 अक्टूबर 2016

                                                                        नव देहली।
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About सौरभ मैथिल

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