कतौ रहुँ अप्पन गाम नै बिसरू
स्वर्गो सँ सुन्नर ठाम नै बिसरू॥,
कन्हा पर गमछा,माथ पर पाग
धोती-कुर्ता परिधान नै बिसरू॥,
दश्मी,दियाबाती,बकर ईद,होरी
सङ्गमे पर- पकवान नै बिसरू॥,
पान-मखान त' खेबेटा करियौ,
दही,चुरा,चिन्नी,आम नै बिसरू॥
प्राती,सोहर,समदाउन,झिझिया
जन्म सँ मरणके गान नै बिसरू॥
मिथिलामे रह' वाला सब मैथिल,
जाति-पातिमे मिलान नै बिसरू॥
चाहे भोज हो या उत्सव कोनो,
खाय लेल अहाँ पान नै बिसरू॥
अप्पन सँस्कृति-अप्पन अस्तित्व,
जा जिबी कर' उत्थान नै बिसरू॥
" *जय मिथिला जय मैथिली"*
😴🙏
This poem is taken from Whatsapp. And writer is unknown for us.
Much more thanks to writer.
If writer see your poem on my blog you should tell me your name. We will write your name in this post.
Thanks Again.😍😍
0 comments:
Post a Comment
Thanks for your valuable feedback. Please be continue over my blog.
आपकी बहुमूल्य प्रतिक्रिया के लिए धन्यवाद। कृपया मेरे ब्लॉग पर आना जारी रखें।