उग्नापति अहां साहित्यमणि
देशी भाषाक बिम्ब अहां
मैथिल शिरोमणि
कतअ रुसल छी,
कतअ विदेह छी
अछि अहाँक मिथिला बौद्धिक संकट मे
कनि आबि अपन मिथिला निहारु हे
फिर तिरहुत क पुण्य भूमि बनाबू हे
बाल्यकाल सँ अहाँक कविता पढ़ै छी
अहाँक गीत झूम-झूम गाबै छी
रस,दर्शनक आनंद लै छी
गोसाउनिक गीत स दिन प्रारम्भ करै छी
कीर्तिलता, कीर्तिपताका,दुर्गा महिमा
हम जखन-तखन पढ़ै छी
जै स जानै छी मिथिलाक गौरव
त्रिहुतिआ संस्कार अ संस्कृति
अहाँक भूपरिक्रमा ग्रन्थि पढ़ि
हमहूँ धरती पर परिक्रमा करै छी
संगहि पुरुषपरीक्षा सन महान ग्रन्थ सँ
पुरुष, पुरुषार्थक अर्थ समझै छी।
हे विद्यापति
कनि आबि जन्म भूमि मिथिला क देखू हे
मैथिल प्रकाण्डता क छै अहाँक आवश्यक
दियौ आशीर्वाद मैथिल ज्ञान- विज्ञान क
अछि संकट म मैथिल पांडित्य
बिसरि राहल छथि मिथिलाजन
मीमांसा दर्शन, नव्यन्यायक ज्ञान
अहि संकट स बाहर उभारु
पुनः विदेह भूमि क पुण्य बनाऊ
जतअ पढता ज्ञानी पंडित
शास्त्रार्थ करता दार्शनिक
इ रिपुञ्जयक आस-विश्वास अछि
विद्या क दीप भण्डार
कतअ रुसल छी,कतअ विदेह छी
कनि आबि अपन मिथिला निहारु हे
कविशेखर,कविकोकिल अहां राजपंडित
जनकवि,उग्नापति अहां साहित्यमणि
देशी भाषाक बिम्ब अहां मैथिल शिरोमणि।
रिपुंजय कुमार ठाकुर
1 नवंबर 2016
नई दिल्ली।
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