उच्चैठ भगवती कालि माता





माँ भगवतीक मन्दिरसँ पुरव दिशामे एक संस्कृत पाठशाला छल, मन्दिर तथा पाठशालाकेँ बीचमे एक नदी बहैत छल । कालिदास महामूर्ख छलाह एवं हुनक पत्नी विद्योत्तमा परम विदुषी छलीह । एक समय कालिदास पत्नीसँ तिरस्कृत भऽ माँ भगवतीकें शरणमे उच्चैठ आबि गेलाह आ ओतय स्थित आवासीय संस्कृत पाठशाला मे भनसियाक कार्य करय लगलाह । किछु समय बितलाक बाद वर्षा ऋतुक आगमन भेल । एक दिन एहन वर्षा भेल जे नदीमे बाढ़ि आबि गेल । ओहिमे जलक धारा बहुत तेज गति सँ चलय लागल । दिनराति वर्षा हो‌इते छल आ संध्यासमय सेहो भऽ रहल छल । मन्दिरकें साफ सफा‌ई सँ पूजा, पाठ, धूप, दीप, आरतीक सब व्यवस्था पाठशालाक छात्र द्वारा हो‌ईत छलनि । वर्षाक विपरीत समय एवं नदीमे पानीक तेज धार देखि विद्यार्थी सभ भगवती मन्दिरमे साँझ देखाबय मे अपना सभके असमर्थ देखि मूर्ख कालिदास के साँझ देखाबयके लेल तैयार कयलनि और हुनका सभ विद्यार्थी कहलखिन जे यदि अहाँ मन्दिरमे जायब तँ कोनो चिन्ह दय देबाक अछि। पंचतन्त्रक सूक्ति अछि “मूर्खस्य हृदयं शून्यं सर्वशून्यं दरिद्रता" ई सूक्ति कालिदास के सामने चरितार्थ छलनि । कालिदास बिना किछु सोचने नदिमे कुदि पड़लाह । हेलैत-डुबैत कोनो तरहें ओ नदी पार भय गेलाह । मन्दिरमे दीप जरेलाक सोचय लगलाह जे हम मन्दिर मे चिन्ह देवाक लेल तँ किछु नहि अनलहुँ, किंकर्तव्यविमूढ़ भऽ सोचय लगलाह । किछु समय सोचलाक बाद मन्दिरके दिवाल पर दीप जरवला सँ जे स्याहि लागल छलैक ओहिपर हुनक ध्यान आकृष्ट भेलनि । सोचलनि जे समस्याक समाधान आब भऽ गेल । ओ अपन दहिना हाथ कें स्याहि पर रगरिकय चिन्ह देबाक लेल स्थान खोजय लगलाह । मन्दिर के दिवाल पर यत्र-तत्र स्याहिके दाग लागल देखि मनमे विचार कयलनि जे देबाल पर चिन्ह देला सँ बढ़ियां भगवती कें मुखमण्डल पर चिन्ह देना‌ई होयत, कारण ओहिमे कोनो पूर्वक दाग नहि छैक । ई सोचि अपन दाहिना हाथ भगवतीक मुखमण्डल सामने बढ़ेलनि । की तखनहि माँ भगवति साक्षात् प्रकट भऽ मूर्ख कालिदास के हाथ पकड़ि कहलखिन्ह, रे महामूर्ख ! तोरा चिन्ह लगयबाक स्थान मन्दिरके अन्दर नहि भेटलौ । हम तोरा सँ खुशी छी जे एहि आपत काल मे तों नदीपार भऽ दीप जरावय एलाह । माँ भगवतिक वचन सुनि मूर्खताक कारण पत्नी विद्योत्तमा सँ तिरस्कृत होबाक कारणें कालिदास विद्यादानक याचना कयलनि । माँ तथास्तु कहि कहलथिन्ह, आ‌ई रात्रि भरिमे जतेक किताब के तों स्पर्श कय लेबह सब कण्ठस्थ भऽ जेतह । एहि तरहक वरदान दय माँ भगवति अन्तर्ध्यान भय गेलीह । कालिदास सेहो कोनो तरहें नदी पार भय पाठशाला पर अयलाह । आब कालीदास विद्यार्थी लोकनिक खाना बनाय भोजन कराकऽ रात्रिभरि विद्यार्थीकें नीच वर्गसँ उच्च वर्गक पुस्तक के स्पर्श कयलनि । मां के कृपा सँ भारत वर्ष मे कविताके लेल अद्वितीय विद्वान भेलाह । ओ अनेकों काव्यक रचना केलनि यथा:- कुमार संभव, रघुवंश, मेघदूत इत्यादि । वर्तमान समय मन्दिर के प्रांगण मे एक मण्डप बना‌ओल गेल अछि, एहि मण्डप मे कालिदासक जीवन सम्बन्धी सब तरहक चित्र चित्रांकित अछि । मन्दिर के उत्तर दिशामे एक विशाल तालाब अछि । एहि मन्दिर पर सुबह शाम आस-पासक गाँव सँ हजारों के संख्या मे लोक पूजा-पाठ आरती करय अबैत छथि । एहिस्थान पर प्रतिदिन भजन, अष्टजाप, कीर्तन हो‌इत रहैत अछि ।
विशेष उत्सव आश्विन नवरात्रामे एहि स्थान पर विशेष उत्सव मना‌ओल जा‌ईत अछि । एहि समय मे चारुकात सँ १५ कोस धरि के आदमी एहि पर्व मे सम्मिलित हो‌इत छथि । नवरात्राके अष्टमी-नवमी तिथिकें बलि प्रदान हजारों संख्या मे कयल जा‌ईत अछि ।
आवागमनक सुविधा : बस द्वारा
१. पश्चिम दिशा सँ :- सीतामढ़ी-पुघरी भाया बेनी पट्टी उच्चैठ ।
२. दक्षिण दिशासँ :- दरभंगा भाया रहिका, बेनीपट्टी, उच्चैठ ।
३. पुरव दिशासँ :- लौकही, राजनगर, मधुबनी, बेनीपट्टी, उच्चैठ ।
४. उत्तर दिशासँ नेपाल तरा‌ई सँ जयनगर, रहिका, बेनीपट्टी, उच्चैठ ।
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About सौरभ मैथिल

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