महाराजा कामेश्वर सिंह को लक्ष्मी व सरस्वती की असीम कृपा प्राप्त थी | उन्होंने प्राच्य व अर्वाचीन शिक्षा के विकास में महत्वपूर्ण योगदान किया | ब्रिटिश राज में दो परस्पर विरोधी शक्तियों के बिच अदभुत संतुलन बनाए रखा |
मिथिला संस्कृत स्नातकोत्तर अध्यन एवं शोध संस्थान में आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रिय सेमिनार के अंतिम दिन बुधवार दिनांक 20 जनवरी 2016 को ये बातें संस्कृत विश्वविद्यालय की प्रतिकुलपति प्रो. निलिना सिन्हा ने बतौर मुख्य अतिथि ये बातें कहीं | प्रतिकुलपति ने कहा कि महाराजा के आवेदनों को पाठ्यक्रम में शामिल किया जाना चाहिए ताकि नयी पीढ़ी भी इससे अवगत हो सके |
विशिष्ट अतिथि के रूप में जुब्बा सहनी शोध एवं सेवा संस्थान के निदेशक डा. हरिश्चंद्र सहनी ने महाराजा के विद्यानुराग के कुछ नमूना के रूप में शोध संस्थान सहित दोनों विश्वविद्यालयों की चर्चा की |
ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय के संस्कृत विभाग के वरीय शिक्षक डा. जयशंकर झा ने मिथिला के विकास के लिए महाराजा को विकास की गंगोत्री बताया | संस्थान के पूर्व निदेशक डा. कृष्णकांत त्रिवेदी ने महाराजा के आवेदनों की विस्तार से चर्चा करते हुए उनके सत्प्रयास से 1948 में आयोजित अखिल भारतीय प्राच्य विद्या सम्मलेन के कई महत्वपूर्ण पक्षों को रेखांकित किया | उन्होंने संस्थान में रखी महत्वपूर्ण पांडुलिपियों के प्रकाशन पर बल दिया | मिथिला शोध संस्थान के निदेशक डा. देवनारायण यादव ने कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए अतिथियों का स्वागत किया | संचालन डा. मित्रनाथ झा तथा धन्यवाद ज्ञापन प्रकाशचंद्र झा ने किया |
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