मिथिला के
अंतिम महाराजा महाराजाधिराज कामेश्वर शिंह आधुनिक भारत के निर्माण के प्रमुख
स्तम्भ थे | शिक्षा, विशेषकर उच्च शिक्षा के क्षेत्र में उनकी योगदान को समझने के
लिए देश की कई संस्थाओं के इतिहास पर नजर डालने की जरुरत है |
मिथिला संस्कृत
स्नातकोतर अध्ययन एवं शोध संस्थान में ‘प्राच्य विद्या के
विकास में महाराजाधिराज डा. कामेश्वर सिंह का अवदान’ विषय पर आयजी दो
दिवसीय राष्ट्रिय सेमिनार के पहले दिन दिनांक 19 जनवरी 2016 को बतौर मुख्य
अतिथि राजनीतिशास्त्र के वरीय प्राचार्य डा. ध्रुतिधारी धिंह ने ये बातें कहीं |
उन्होंने कहा कि विद्या बल पर प्राप्त मिथिला के महाराजाओं में विद्यानुराग एवं
ज्ञान पिपासा पर्याप्त रही है | महाराजा कामेश्वर सिंह ने इस क्षेत्र में भी अपने
कर्तव्यों का निर्वहन किया | उन्होंने कहा कि वास्तविक ज्ञान सिर्फ पुस्तक पढने से
ही नहीं, बल्कि उसपर चिंतन-मनन से होता है |
कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय के
पूर्व कुलपति प्रो. उपेन्द्र झा ‘वैदिक’ ने कार्यक्रम का उद्घाटन करते हुए कहा कि शिक्षिक एवं सांस्कृतिक क्षेत्रों
में महाराजा का अवदान काफी महत्वपूर्ण रहा है | उनकी दानशीलता, उदारता और
विद्यानुरागी अनुकरणीय है |
बतौर विशिष्ठ अतिथि संस्कृत
विश्वविद्यालय के धर्मशास्त्र विभाग के पूर्व अध्यक्ष डा. त्रिपति त्रिपाठी ने कहा
कि महाराजाधिराज कामेश्वर सिंह हिंदुस्तान में एक मात्र ऐसे राजा थे, जिन्होंने
तलवार या बारूद के बजाए विद्याबल पर राज्य हाशिल किया | विषय और ज्ञान के क्षेत्र
में अपने अवदानों के कारण महाराजा अनुसंधान का विषय बने हुए हैं |
मौके पर डा. कुणाल कुमार झा ने भी
विचार व्यक्त किया | कार्यक्रम की शुरुआत गवेषक हरेकृष्ण झा के मंगलाचरण से हुई |
आरंभ में निदेशक डा. देवनारायण यादव ने अतिथियों का स्वागत व संचालन डा. मित्रनाथ
झा था धन्यवाद ज्ञापन प्रकाशचंद्र झा ने किया |
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