भाषा
अभिव्यक्ति का माध्यम होता है, परन्तु लोकसंस्कृति का आत्मतत्व भी होता है | लोग
जिव्वन के सभी कुछ चाहे व्यापार एवं शिक्षा हो अथवा खेती-गृहस्थी, खान-पण, रहन-सहन
हो अथवा धार्मिक काम-काज में भाषा का विशेष महत्व है | जो यथार्थ ज्ञान अपने
मातृभाषा एवं इसके शब्दावली से प्राप्त होगा, वही भाषान्तर के स्थिति में ज्ञान की
यथार्थता संशययुक्त जान पड़ेगा |
इस आलेख के प्रसंग में मैथिली भाषा की
उपयोगिता गॉव एवं गॉव के गृहस्थी के सन्दर्भ में देखा गया है | एक वह युग था जो
पूर्वज के देखा-देखि में कृषि होती थी | खाद्यान्न, दलहन पर विशेष जोर, मगर तेलहन
की खेती आवश्यकता के योग्य | आज की स्थिति में जनसंख्याँ की तो जैसे बढ़ ही आ गई है
| सामान्य जीवन की भी आवश्यकता भी बढ़ रही है | जीविका के उद्देश्य से शहर की ओर
आवागमन शुरू होने से सांस्कृतिक सौगात में बढ़ोतरी हो गया | सत्य मन जाए तो
सांस्कृतिक मेल-मिलाप होने से भाषा में भी बदलाव देखने को मिल्र रही है | आजकी
स्थिति है की आव्ध्य्कता की पूर्ति के लिए नये ढंग से खेती की जनि चाहिए | इस
सन्दर्भ में पत्र-पत्रिका, रेडियो-दूरदर्शन के माध्यम से खेती करने की जानकारी
प्रदान की जा रही है | परिस्थिति विशेष के अनुसार एवं आवश्यकता की पूर्ति के लिए
नये-नये उपाय का उपयोग आज की अनिवार्यता मानी जा रही है | इस प्रसंग में मिथिला
समेट बिहार भर में औषधीय खेती शुरू हो चुकी है |
औषधीय खेती से तात्पर्य है कि प्राचीन
काल में जंगल में स्वाभाविक रूप से जड़ी-बूटी उगते थे, जिसके उपयोग से लोगसभी निरोग
रहते थे | संसार के भूमंडलीकरण होने के पश्चात अब इस लाभकारी खेती की महत्व बढ़ गयी
है | विश्व के विकसित देशों में तकनिकी विकास पर्याप्त मात्रा में हुई है | जैसे
अश्वगंधा, सर्पगंधा, पाषणभेदी, कालमेघ, सनायपत्ती | इसी तरह से बहुत सारे पौधा के
पत्तियों से महंगे एवं सुगन्धित तेल मिलता है | इस तेल की आवश्यकता अमेरिका,
जापान, चीन, जैसे विकसित देशों में होता है | आप को यह जानकर बहुत आश्चर्य होगा कि
इन तेलों की किम्मत 800 रुपया प्रति लीटर होता है | मिथिला के बलुवाहा मिटटी में
आदि काल से जंगल उपलब्ध है | खस के जड़ में सुगन्धित तेल पाया जाता है | जिसका
मूल्य 10000-18000 प्रति कि०ग्रा० होता है | अब बोलिए जो इतनी मूल्य प्राप्त करने
केलिए क्यों नही खासकर इसकी खेती की जाए ? यहाँ पर विचार करने का उद्देश्य है कि
इस तरह की खेती के बारे में अख़बारों, पत्र-पत्रिकाओं में मिलता है परन्तु अंग्रेजी
में | इस खेती के बारे में यदि मिथिलावासियों के लिए मैथिली भाषा में शुरू की जाए
तो इसका बहुत अच्छा परिणाम मिलेगा | उदाहरण केलिए खस के जड़ 2 X 2 फिट की दुरी पर
बोया जाता है | हित की जानकारी शिक्षा से जुड़े किसान के लिए ठीक है मगर किसान के
शिक्षा के बारे में तो सभी लोग जानते ही हैं | इस परिस्थिति में अगर दो जड़ के बिच
की दुरी डेढ़ हाथ x डेढ़ हाथ लिखा जय तो ज्यां की प्राप्ति के लिए सरल हो जाएगा |
ठीक उसी तरह खेत के नाप-जोख केलिए एकड़ का ज्ञान पढ़े-लिखे किसानों को ही होता है | इसकेलिए
नाप-जोख का रूप बदल कर बीघा-कट्ठा में किया जाए तो उतर मैथिली भाषा की महिमा बढ़
जाएगी, साथ ही सभी लोगों के संस्कार बाल्यकाल से उपयोग होरहे कट्ठा-धुर की स्थिति
भी स्पष्ट हो जाएगी | कहने का तात्पर्य यह है कि हम लोग जबतक व्यवहारिक जीवन के सभी क्षेत्र में मैथिली का
उपयोग करना शुरू नही कर देंगे तबतक मैथिली का सही रूप से अपने अस्तित्व में नही आ
सकेगा | भाषा अभिव्यक्ति का साधन होता है, मगर जीवन के हर पहलूवों में इस मैथिली का
प्रयोग होना चाहिए | मैथिली का दिखावा करने वाला उपयोग मैथिली के साथ छल जैसा है |
एक किसान दुसरे किसान के साथ बात करेंगे मैथिली भाषा के माध्यम से | वह विशेषज्ञ
व्यवहारिक एवं सफल मने जाते हैं जो मिथिला के धरती पर मैथिली के लिए मैथिली के
माध्यम से खेती का व्यवहारिक एवं सैद्धांतिक प्रशिक्षण देने सक्षम हो |
प्रसार भारती का आकाशवाणी हो
अथवा दूरदर्शन , उसका विशेषज्ञ को चाहिए की वे प्रयास करे कि मैथिली भाषा के
शब्दावली का उपोग किया जाना चाहिए | इस क्रम में यह चर्चा आवश्यक है कि कुछ
विशेषज्ञों को कठिनाई होना स्वाभाविक है कि वे शुद्ध मैथिली के भय से मैथिली का
प्रयोग ही नही करे | मगर मैथिली का साहित्यिक के साथ-साथ लौकिक भी रूप है | जिस
रूप में विशेषज्ञ प्रयोग करें वही अच्छा होगा, तथ्य की जानकारी आवश्यक है, भाषा के
शुद्धि की नही |
सभी का परिणाम यह है कि मैथिली की
व्यापकता की आवश्यकता खेत-खरिहान को भी जरुरत है |
THE END
0 comments:
Post a Comment
Thanks for your valuable feedback. Please be continue over my blog.
आपकी बहुमूल्य प्रतिक्रिया के लिए धन्यवाद। कृपया मेरे ब्लॉग पर आना जारी रखें।